इस हस्त - चित्र को देखकर अपनी हथेली में शनि की स्थिति का सहज अनुमान कर सकते है कि आपका शनि किस स्थिति में हैं। हस्तरेखा शास्त्र में शनि का स्थान ह्रदय रेखा के ऊपर और मध्यमा अंगुली के मूल में होता है।शनि एकांतप्रियता,भाग्यवादिता,गंभीरता,बुद्धिमतता,दूरदर्शिता,आध्यात्मिकता एवं परिश्रमशीलता आदि के परिचायक है।भाग्य रेखा की समाप्ति इसी अंगुली के मूल में होती है,चाहे वह रेखा हथेली के किसी भी क्षेत्र से क्यों न निकलती हो इसलिए मध्यमा अंगुली को 'भाग्य की देवी'कहा जाता है।यदि हथेली में शनि पर्वत का अभाव हो या धसा हुआ हो तो व्यक्ति अपने जीवन में विशेष सफलता या सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता है।यदि शनि ग्रह पूर्ण विकसित यानि उठा हुआ होता है तो व्यक्ति प्रबल भाग्यवान होता है तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक ऊँचा उठता है। वह अपने कार्यों तथा लक्ष्यों की ओर बढ़ने वाला होता है तथा पूर्ण प्रगति करता है।ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण मितव्ययी होता है तथा अचल सम्पति बढाने वाला होता है,इसीलिए शनि को भाग्य विधाता कहा जाता है। अतः जिस व्यक्ति के हथेली में शनि कमजोर हो उसे अपने सभी मनोवांच्छित फलों को प्राप्त करने के लिए शनि-मंत्र का जप एवं विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।
जय शनिदेव। जय भाग्य विधाता। शत् शत् नमन आपको।आप सदा अपने भक्तों का कल्याण करें...
पण्डित मनोज मणि तिवारी बेतिया बिहार।
bahut badhiya.
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