Sunday, January 25, 2015

भवन सूर्यबेधी नहीं होना चाहिये...



वास्तुशास्त्र के अनुसार अपने भू-खंड पर निवास के लिए मकान-निर्माण में विशेष ध्यान देना चाहिए। वास्तु नियमो का पालन करते हुए यह भी देखना चाहिए कि मकान सूर्यवेधी न हो। जो मकान पूरब से पश्चिम की ओर लंबा होता है, उसे सूर्यवेधी मकान कहते हैं।ऐसे मकान में निवास करने वाले बीमारी, तनाव, शारीरिक परेशानी, बहुत परिश्रम से अल्पलाभ,संतान कष्ट, अशिक्षा,धन-व्यय,अशांति, कलह,द्वेषऔर सरकारी अधिकारियों के प्रकोप से परेशान हुआ करते हैं।उसके 
अतः मकान उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा होना चाहिए, ऐसे मकान को चंद्रवेधी मकान कहते हैं। ऐसे मकान में निवास करने वाले सुख,शांति,समृद्धि, सम्पन्नता, अच्छी शिक्षा,आरोग्यता, वंश-वृद्धि,धन संचय और बड़े लोगों से मैत्री करने वाले होते हैं। अगर इनके ऊपर कोई संकट भी आता है तो उसका शीघ्र हीं निवारण हो जाता है। ये अच्छी आयु का भोग भी करते हैं। 
                            इसके अलावा मकान -निर्माण में यह भी देखना चाहिये कि मकान के किस ओर का भाग अधिक ऊँचा और किस ओर का भाग नीचा है क्योंकि मकान के भाग के ऊंचाई और नीचाई का भी उसमें रहनेवाले लोगों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मकान का दक्षिणी भाग सबसे ऊँचा होना चाहिए,उससे कम ऊँचा पश्चिम का भाग होना चाहिए, पश्चिम से कम ऊँचा उत्तर का भाग होना चाहिए और सबसे नीच मकान का पूर्वी भाग होना चाहिए। इसी प्रकार मकान के कोणों के ऊंचाई और नीचाई का भी विशेष ध्यान देना चाहिए। मकान का पश्चिम -दक्षिण कोण अर्थात नैऋत्य कोण का भाग सबसे अधिक ऊँचा होना चाहिए तथा पूरब -उत्तर का कोण अर्थात ईशान कोण का भाग सबसे नीचा होना चाहिए। ऐसा होने से उस मकान में रहने वाले लोगो को अच्छी उन्नति, अच्छी स्वास्थ, पूर्ण सुख, शांति, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है। यदि मकान -निर्माण में उसके दिशाओं के भाग की ऊंचाई और कोणों की ऊंचाई इसके विपरीत हों तो इनके विपरीत प्रभाव उस मकान में रहने वाले लोगों पर अवश्य ही पड़ता है। इसलिए मकान -निर्माण में इन विन्दुओं पर अवश्य हीं पूर्ण ध्यान देना चाहिए। 
                         इसी प्रकार मकान में कमरों की स्थिति, पानी की बहाव यानि नाली की स्थिति,शौचालय का स्थान, रसोईघर का स्थान, पूजाघर, सिढीघर,मकान के आसपास खाली स्थान आदि पर भी ध्यान देना चाहिए। मकान -मालिक का रहने वाला कमरा सदैव पश्चिम -दक्षिण कोण यानि नैऋत्य कोण पर होना चाहिए,बच्चों का अध्ययन -कक्ष उत्तर में होना चाहिए, रसोईघर अनिवार्य -रूप से पूरब -दक्षिण कोण अर्थात अग्नि -कोण पर होना चाहिए,पूजाघर पूरब -उत्तर कोण यानि ईशान -कोण में होना चाहिए,शौचालय पश्चिम या दक्षिण दिशा में इसप्रकार बनावायें की शौच करते समय व्यक्ति का मुख उत्तर या दक्षिण दिशा की ओर रहे। मकान में पानी का बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर या पश्चिम से पूरब की ओर होना चाहिए, नाली से जल -प्रवाह पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए यानि घर से पानी का निकास पूरब, उत्तर या ईशान -कोण की ओर हीं होना चाहिए। मकान से पूरब और उत्तर खाली स्थान छोड़ना चाहिए। अगर मकान से पश्चिम और दक्षिण खाली स्थान छोड़ना अनिवार्यता हो तो पूरब और उत्तर में छोड़ी गई खाली जमीन से कम हीं छोड़ना चाहिये। ऐसा करने से मकान में रहने वाले लोगों को प्रसन्नता,ऐश्वर्य, उन्नति, सुख -शांति, वंश -वृद्धि, धन -वृद्धि और आरोग्यता आदि की प्राप्ति होती है। 
                           इति -शुभम् 
                            पण्डित मनोज मणि तिवारी , बेतिया ( बिहार )

No comments:

Post a Comment