वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन निर्माण में भूमि चयन का बहुत महत्त्व होता है।सुविधापूर्ण वातावरण, हरियाली, समुचित सूर्य-प्रकाश तथा जल-उपलब्धि के अतिरिक्त यह भी देखना चाहिए कि वह भवन निर्माण के योग्य है या नहीं।
भोज के ग्रन्थ "युक्तिकल्पतरु" एवं "समरांगण सूत्रधार" दोनों में भूमि के चयन पर लिखा है:-
"ईशानपूर्वप्लावनो मध्य स्थान समुन्नतः ।
उत्तमः कीर्तितो देशो गृहाय च नगराय च ।। अर्थात वही भूमि गृह निर्माण के लिए उपयुक्त होगी जो मध्य भाग से उठी हो तथा पूरब-उत्तर की ओर झुकी हो।
जिस भूमि पर हरे-भरे वृक्ष हों, पानी, हरी घास एवं पत्थर भी हों और पूरब-उत्तर की ओर ढलान हो, उस भूमि पर गृह निर्माण करने से वंश-वृद्धि, धन लाभ,ऐश्वर्य तथा उत्तरोत्तर उन्नति होती है।परंतु फटी हुई भूमि मृत्युकारक, ऊसर भूमि धन नाश,शल्य युक्त भूमि सदैव दुःख, ऊँची-नीची भूमि शत्रुवृद्धि कारक होती है।
भूमि चयन में मिट्टी परीक्षण भी जरुरी है, मिट्टी ठोस होनी चाहिए। जो भूमि ठोस नहीं है,वह भवन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है।भूमि परीक्षण में जमीन के कोणों का बहुत महत्त्व है,जो प्लाट अनेक कोणों वाले होते हैं वे शुभ नहीं होते हैं।इसीलिए आयताकार या वर्गाकार प्लाट गृह निर्माण के लिए उत्तम कहे गए हैं।
जमीन का चयन ऐसा हो कि उसपर मकान सूर्यवेधी न हो। पूरब से पश्चिम की ओर लंबा मकान सूर्यवेधी होता है, और जो मकान उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा होता है वह चंद्रवेधि होता है। मकान चंद्रवेधी हीं शुभ होता है।चंद्रवेधी मकान में धन-जन की वृद्धि होती है। बाग-बगीचा हेतू सूर्यवेधी और चंद्रवेधी दोनों जमीन ठीक माने जाते हैं। देवालय और मंदिर के लिए सूर्यवेधी और चंद्रवेधी का विचार नहीं होता है।
इति शुभम! जय वास्तु!
पंडित मनोज मणि तिवारी, बेतिया (बिहार)
भोज के ग्रन्थ "युक्तिकल्पतरु" एवं "समरांगण सूत्रधार" दोनों में भूमि के चयन पर लिखा है:-
"ईशानपूर्वप्लावनो मध्य स्थान समुन्नतः ।
उत्तमः कीर्तितो देशो गृहाय च नगराय च ।। अर्थात वही भूमि गृह निर्माण के लिए उपयुक्त होगी जो मध्य भाग से उठी हो तथा पूरब-उत्तर की ओर झुकी हो।
जिस भूमि पर हरे-भरे वृक्ष हों, पानी, हरी घास एवं पत्थर भी हों और पूरब-उत्तर की ओर ढलान हो, उस भूमि पर गृह निर्माण करने से वंश-वृद्धि, धन लाभ,ऐश्वर्य तथा उत्तरोत्तर उन्नति होती है।परंतु फटी हुई भूमि मृत्युकारक, ऊसर भूमि धन नाश,शल्य युक्त भूमि सदैव दुःख, ऊँची-नीची भूमि शत्रुवृद्धि कारक होती है।
भूमि चयन में मिट्टी परीक्षण भी जरुरी है, मिट्टी ठोस होनी चाहिए। जो भूमि ठोस नहीं है,वह भवन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है।भूमि परीक्षण में जमीन के कोणों का बहुत महत्त्व है,जो प्लाट अनेक कोणों वाले होते हैं वे शुभ नहीं होते हैं।इसीलिए आयताकार या वर्गाकार प्लाट गृह निर्माण के लिए उत्तम कहे गए हैं।
जमीन का चयन ऐसा हो कि उसपर मकान सूर्यवेधी न हो। पूरब से पश्चिम की ओर लंबा मकान सूर्यवेधी होता है, और जो मकान उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा होता है वह चंद्रवेधि होता है। मकान चंद्रवेधी हीं शुभ होता है।चंद्रवेधी मकान में धन-जन की वृद्धि होती है। बाग-बगीचा हेतू सूर्यवेधी और चंद्रवेधी दोनों जमीन ठीक माने जाते हैं। देवालय और मंदिर के लिए सूर्यवेधी और चंद्रवेधी का विचार नहीं होता है।
इति शुभम! जय वास्तु!
पंडित मनोज मणि तिवारी, बेतिया (बिहार)
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