भारतीय ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो उस प्रवेश के समय को "मकर-संक्रांति" कहा जाता है। संक्रांति का कोई समय निश्चित नहीं होता है, यह दिन अथवा रात में किसी भी समय हो सकता है। संक्रांति के समय के अनुसार हीं "पुण्य-काल" का निर्धारण किया जाता है। सामान्यतः सूर्य-संक्रांति यदि दिन में ही होता है तो उसी दिन पुण्य-काल होता है, लेकिन यदि संक्रांति अर्द्ध-रात्रि के उपरांत हो तो दूसरे दिन सूर्योदय के बाद "पुण्य-काल" होता है। खासकर यदि "उत्तरायण" अर्थात "मकर-संक्रांति" सूर्यास्त के उपरांत हो तो दूसरा दिन "पुण्य-काल" होता है।
हेमाद्रि के मतानुसार मकर-संक्रांति से अगली 40 घटी यानि 16 घंटे तक पुण्य-काल मानी गयी है।"ब्रह्मवैवर्त पुराण" में भी लिखा गया है कि "कर्क-संक्रांति" में अगली 30 घटी यानि 12 घंटे और "मकर की संक्रांति" में दश अधिक अर्थात 40 घटी यानि 16 घंटे तक पुण्य-काल मानी जाती है। इसी प्रकार "भविष्य-पुराण" में भी कहा गया है कि अर्द्ध-रात्र के समय यदि धनु राशि को छोड़कर मकर राशि के ऊपर सूर्य जाय तो अगले दिन स्नान दान कर्तव्य है।
चूँकि इस संवत 2071, अंग्रेजी वर्ष 2015 में तारीख14 जनवरी को पूरा दिन बितने के उपरांत रात्रि समय 01 बजकर 19 मिनट पर सूर्य धनु राशि छोड़कर मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। अतः ज्योतिषीय मतों के अनुसार दिनांक 15 जनवरी दिन-गुरुवार को सूर्योदय के बाद "मकर-संक्रांति" का पुण्य पर्व धुमधाम से मनाया जायेगा।
इस पर्व में स्नान और दान का विशेष महत्त्व है। इस सन्दर्भ में "स्कन्दपुराण" के वचन से हेमाद्रिग्रंथ में कहा गया है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में तिल की और गौ का दान करता है उसकी सब कामनाएं पूर्ण होती है और वह परम सुख को भोगता है।"विष्णुधर्म" में भी कहा गया है कि उत्तरायण में वस्त्र दान करने का महाफल है और तिल पूर्ण वृष का दान करने से रोग से मुक्ति हो जाती है। "शिवरहस्य" में भी लिखा गया है कि उत्तरायण में सदैव काले तिलों युक्त पानी से स्नान और तिल का उबटना करना चाहिये साथ ही तिलो का दान करके ब्राह्मणों को देना चाहिये। तिल के तेल से शिवमंदिर में शुभ दीपक जलाना चाहिये। "कल्पतरु" में
अतः मकर-संक्रांति के दिन गंगा में या साधारण तौर पर भी स्नानोंपरांत काला तिल, तिल की बनीं वस्तु, अन्न, कपड़ा, ऊन या ऊनी वस्त्र, कम्बल, गुड़, गौ,स्वर्ण, चिउड़ा आदि का यथासंभव दान कर ब्राह्मणों को भोजन कराने से सकल अनिष्टों का नाश होता है और सुख,स्वास्थ और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यहाँ भगवान सूर्य और शनि दोनों के पदार्थों का दान इसलिये दिया जाता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि के घर यानि मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
।। हमारे पर्व मकर-संक्रांति की जय ।।
पंडित मनोज मणि तिवारी, बेतिया (बिहार)
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