Thursday, January 29, 2015

कुण्डली में ग्रहों की दृष्टि एवं उच्च राशि में ग्रह-फल

          
             


   भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुण्डली का फलादेश का विचार करने के लिए उस कुंडली में अवस्थित ग्रहों की दृष्टि किस-किस भाव पर पड़ रही है, इसकी जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। साथ हीं यह भी देखना चाहिए कि उस कुंडली में कितने ग्रह अपनी उच्च राशि में हैं और कितने ग्रह अपनी नीच राशि में अवस्थित हैं।कौन ग्रह किस राशि में उच्च होता है तथा किस राशि में नीच होता है तथा उसका फल क्या होता है, इसकी विस्तृत जानकारी नीचे अंकित की जा रही है:-                                                                                         सूर्य जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। सूर्य मेष राशि में उच्च कहलाता है तथा तुला राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि सूर्य उच्च का होता है यानि मेष राशि में होता है तो वह व्यक्ति भाग्यवान, धनी, नेतृत्व शक्ति संपन्न, विद्वान, सरकार में या समाज में उच्च पद प्राप्त करनेवाला, प्रसिद्ध, उन्नति करने वाला, प्रतिष्ठित, यशस्वी और सुखी होता है। ऐसे व्यक्ति को अन्याय, अधर्म, दुराचार, हत्या, व्यभिचार नहीं करना चाहिए नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देते हैं। यदि सूर्य अपनी नीच राशि यानि तुला राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
               चन्द्रमा जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। चन्द्रमा वृष राशि में उच्च होता है तथा वृश्चिक राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि चन्द्रमा उच्च का होता है यानि वृष राशि में होता है तो वह व्यक्ति अलंकार-प्रिय, मिष्ठान भोजी, विलासी, माननीय, कोमल ह्रदय वाला, विदेश-यात्रा करनेवाला, यात्रा-प्रिय, सुखी और चपल होता है। ऐसे व्यक्ति को माता, सास, दादी या किसी औरत के साथ अन्याय या अपमान नहीं करना चाहिये नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देते हैं। यदि चन्द्रमा अपनी नीच राशि अर्थात वृश्चिक राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते है।
              मंगल जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से सातवें, चौथे और आठवें भाव को देखता है।मंगल मकर राशि में उच्च होता है तथा कर्क राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि मंगल उच्च का होता है यानि मकर राशि में होता है तो वह व्यक्ति शक्तिमान, परिश्रमी, धैर्यवान, सरकार द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाला, पुलिस या सेना में कार्य करने वाला, विजेता, लड़ाई में विजय पाने वाला, साहसी और क्रोधी होता है। ऐसे व्यक्ति को अपने सगे भाई, मित्र, साला, बहनोई, रिश्तेदार और गुरु के साथ विश्वासघात या अपमान नहीं करना चाहिए, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देते हैं। यदि मंगल अपनी नीच राशि यानि कर्क राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते है।
              बुध जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। बुध कन्या राशि में उच्च होता है तथा मीन राशि में नीच होता है। किसी के जन्म कुंडली में यदि बुध उच्च का होता है यानि कन्या राशि में होता है तो वह बुद्धिमान, लेखक, प्रकाशन संबंधी कार्य करने वाला, राजा तुल्य सुख भोगने वाला, वंश वृद्धि करने वाला, प्रसन्न रहने वाला, गणित संबंधी कार्य करनेवाला, व्यापार करनेवाला, धन एवं जमीन बढ़ाने वाला, शत्रुनाशक और भौतिक सुख भोगनेवाला होता है। ऐसे व्यक्ति को अपनी पुत्री, बहन, साली, बुआ या किसी भी कन्या को कष्ट नहीं देना चाहिये, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ फल देना छोड़ देते हैं। यदि बुध अपनी नीच राशि यानि मीन राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
              गुरु जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से सातवें, पाँचवें और नौवें भाव को देखता है। गुरु यानि बृहस्पति कर्क राशि में उच्च होता है तथा मकर राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि गुरु उच्च का होता है यानि कर्क राशि में होता है तो वह विद्वान, शासक, मंत्री, शासनप्रिय, सुशील, उदार, सुखी, ऐश्वर्यशाली, स्वभाव से अधिकारप्रिय, नेतृत्व करनेवाले, संचालनकर्ता, न्याय प्रिय, प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश या वकील आदि होता है। ऐसे व्यक्ति को धर्म, देवी-देवता, ब्राह्मण, गुरु, साधु-सन्यासी, पिता, चाचा, दादा और श्रेठ जनों को कष्ट या अपमान नहीं करना चाहिये, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ फल देना छोड़ देते हैं। यदि गुरु अपनी नीच राशि यानि मकर राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
                 शुक्र जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। शुक्र मीन राशि में उच्च होता है तथा कन्या राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि शुक्र उच्च का होता है यानि मीन राशि में होता है तो वह सुन्दर, प्रेमी, कामी, विलासी, भाग्यवान, संगीतप्रिय, शान-शौकतवाला, खुशबू का प्रेमी, सैर करनेवाला, ऐश्वर्यशाली, भूमि-भवन से युक्त, कई वाहनों का स्वामी, सुखी और धनी होता है। ऐसे व्यक्ति को अपनी स्त्री या किसी भी स्त्री को कष्ट पीड़ा नहीं देनी चाहिये। स्त्री-समाज को अपमानित नहीं करना चाहिये, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ फल देना छोड़ देते हैं। यदि शुक्र अपनी नीच राशि यानि कन्या राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
               शनि जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से सातवें, तीसरे और दशवें भाव को देखता है। शनि तुला राशि में उच्च होता है तथा मेष राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि शनि उच्च का होता है यानि तुला राशि में होता है तो वह अधिपति, जमींदार, राजा तुल्य शक्तिमान, यशस्वी, परम-शक्तिशाली, भाग्यशाली, चिंतन करनेवाला, पुर्ण प्रगति करनेवाला, जादूगर, इंजिनियर, रसायन-शास्त्री, साहित्यकार, वैज्ञानिक, पूर्ण रहस्यवादी आदि होता है। ऐसे व्यक्ति को चाचा और निम्न वर्ग के लोगों को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिये साथ हीं उसे मांस-मदिरा तथा पर-स्त्री गमन से बचना चाहिए, नहीं तो उसका शनि अपना शुभ फल देना छोड़ देता है। यदि शनि अपनी नीच राशि यानि मेष राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
                राहु एक छाया ग्रह है। राहु मिथुन राशि में उच्च होता है तथा धनु राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि राहु उच्च का होता है यानि मिथुन राशि में होता है तो वह शूरवीर, पराक्रमी, कठोर एवं उद्दत स्वभाव वाला, साहसी, ताकतवर, मानी-अभिमानी, कीर्ति स्थापित करनेवाला, संशयी, तीव्र निर्णय लेनेवाला, धन बढ़ाने वाला परंतु किसी का परवाह नहीं करनेवाला होता है। ऐसे व्यक्ति को अपनी ताकत के बल पर किसी को सताना नहीं चाहिए तथा अवैध सम्बन्ध से बचना चाहिये, नहीं तो उच्च राहु का शुभ फल शीघ्र हीं समाप्त हो जाता है।
                केतु भी एक छाया ग्रह है। केतु धनु राशि में उच्च होता है तथा मिथुन राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि केतु उच्च का होता है यानि धनु राशि में होता है तो वह धनी, धन-संग्रह करनेवाला, भौतिक उन्नति करनेवाला, भ्रमणशील परंतु नीच स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्ति को नीच कर्म से बचना चाहिये नहीं तो उसके द्वारा संग्रहित दौलत शीघ्र हीं नष्ट हो जाता है।
                  इसप्रकार इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर ही किसी भी व्यक्ति की कुंडली के सन्दर्भ में फलादेश किया जाता है।इसके बाद के लेख में सभी ग्रहों का पुर्ण परिचय और उसका मानव-जीवन पर प्रभाव के बारे में लिखने का प्रयत्न करूँगा। आप सबों से इस कार्य में सुझाव सादर आमंत्रित है ताकि बेहतर लेख दे सकूँ। धन्यवाद...
               ।।     इति-शुभम्     ।।
                पंडित मनोज मणि तिवारी, बेतिया (बिहार)

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