भारतीय ज्योतिषीय गणना एवं कई हिन्दू पंचांगों में वर्णित भविष्यफल के अनुसार दिनांक 09 फरवरी 2016 से 07 अप्रैल 2016 तक की अवधी में कई ग्रहों की स्थितियों में परिवर्तन हो रहा है, जिससे देश और दुनिया में कई शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ने की प्रबल संभावनाएं बनती हैं। इस अवधी में होने वाले कई परिवर्तनों की कुछ स्थितियां इस प्रकार की है:-
(1) इस सम्पूर्ण अवधी में वृहस्पति-ग्रह का चाल पूर्ण वक्री है।
(2) इस अवधी में हीं दिनांक 13 फरवरी 2016 दिन-शनिवार को सूर्य शत्रुशनि की कुम्भ राशि में प्रवेश कर रहा है, जहाँ पापग्रह केतु पहले से विराजमान है।
(3)इस अवधी में हीं दिनांक 21 फरवरी 2016 दिन-रविवार को वृहस्पति-ग्रह अपनी वक्री चाल से सिंह राशि में प्रवेश कर रहा है, जहाँ पापग्रह राहु पहले से विराजमान है।
(4) इसी अवधी में हीं दिनांक 29 फरवरी 2016 दिन-सोमवार को पापग्रह मंगल वृश्चिक राशि में प्रवेश कर रहा है, जहाँ प्रबल शत्रु पापग्रह शनि पहले से विराजमान है।
(५) इसी अवधी में हीं दिनांक 09 मार्च 2016 दिन-बुधवार को सूर्य-ग्रहण भी लग रहा है।
(6) इसी अवधी में फाल्गुन मास में पांच मंगलवार भी हो रहा है।
(7) इसी अवधी में हीं दिनांक 09 मार्च 2016 दिन-बुधवार तिथि-अमावस्या को कुम्भ राशि में सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र और केतु यानि पाँच-ग्रहों का एक साथ होना और इसी समय सूर्य-ग्रहण का लगाना ।
अतः भारतीय ज्योतिष मतानुसार वृहस्पति का वक्री होना, सूर्य केतु के साथ होना, वृहस्पति राहु के साथ होना, मंगल शनि के साथ होना, फाल्गुन मास में पाँच मंगलवार का होना, पंचग्रही योग में अमावस्या का होना और उसमे सूर्य-ग्रहण का लगना, एकसाथ ऐसे सभी योग देश और दुनिया के लिए बड़े ही अनिष्टकारी और अशुभ फल देने वाले होते हैं। इस अवधी के दौरान दैविक, प्राकृतिक प्रकोप यानि आँधी-तूफान, बाढ़, भूकंप, अग्नि-प्रकोप, विषैले जीवों का प्रकोप, रोग-महामारी के साथ-साथ युद्ध, विद्रोह, विस्फोट, अशांति, उग्रता, आतंकी कार्यवाही, शासकवर्ग में द्वेषता, राज्यों में मतभेद, सीमा पर तनाव, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु, देश में हड़ताल, किसी घोटाले का उजागर होना, सरकारी कार्यों में बाधा, सैन्य-बलों की कार्यवाही, सैन्य-क्षति, स्त्रीवर्ग को कष्टादि की प्रबल संभावनाएं बनती है। इस अवधी में सीमापर आतंकवादी गतिविधियों से युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। जनसंघर्ष और जनधन की हानि भी हो सकती है।
इन ग्रह-योगों का प्रभाव शिर्फ़ अपने देश पर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व पर भी दिखने की संभावना बनती है। इस अवधी में राष्ट्र-मंडलों में आपसी मतभेद होगा जो संघर्ष का रूप धारण करेगा, युद्ध की स्थिति बनेगी, कोई राष्ट्र किसी राष्ट्र को सैन्य कार्यवाही के फलस्वरूप अपने अधीन करने की कोशिश करेगा। संयुक्त राष्ट्रसंघ नीतियों के उलंघन की घटनाएं भी हो सकती है। विकसित राष्ट्रों की एकपक्षीय कार्यवाही का अन्य राष्ट्र विरोध भी कर सकते हैं। राष्ट्रों की सैन्य कार्यवाही और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से व्यापक जन-संहार होने की भी संभावनाएं बनती है। अंतराष्ट्रीय संबंधों में विस्तार हेतु राष्ट्राध्यक्षों की लगातार विदेश यात्रायें और बैठकें होंगी,इसमे कई पुराने सम्बन्ध टूटेंगे तथा नये समीकरण बनेगें,जिसमे भारत की भूमिका अहम् और मजबूत होगी।
इस अवधी में भारतीय राजकीय खर्च में काफी वृद्धि हो सकती है। शासन-प्रणाली पर न्यायलय के हस्तक्षेप से कोइ निर्णय प्रभावित हो सकता है तथा शासक वर्ग में कुछ अंदरुनी मतभेद भी सामने आ सकता है। रासायनिक पदार्थ और औषधि-सामग्री महंगे हो सकते हैं। फरवरी महीने की 09, 13, 14, 16, 20, 21, 23, 27, 28 और मार्च महीने की 01, 04, 06, 08, 12, 15, 19, 22, 26, 27, 29 और अप्रैल महीने की 02, 05 तारीखें अनिष्टकारी प्रभाव दे सकती हैं।
इति-शुभम।
पंडित मनोज मणि तिवारी, बेतिया (बिहार)
Pandit Manoj Mani Tiwari
Astrology is the ocean of knowledge
Sunday, February 07, 2016
ज्योतिषिय दृष्टि में 09 फरवरी से 07 अप्रैल 2016 तक ग्रह-प्रभाव का अनुमान
Friday, October 16, 2015
राष्ट्रधर्म और आतंकवाद
इस विषम परिस्थिति में किसी ज्योतिषी, कवि और लेखक की लेखनी खामोश नहीं रह सकती है क्योंकि राष्ट्र है तो हम हैं। राष्ट्र सुरक्षित रहेगा तो हमारा अस्तित्व भी कायम रहेगा। हमलोग "जननी जन्मभूमि" के सिद्धान्त को माननेवाले हैं अर्थात् हमारी जन्मभूमि (मातृभूमि) भी माँ है इसलिए भारत को "भरत-माता" भी कहते हैं। प्रत्येक पुत्र का कर्तव्य होता है कि अपनी माता की सब प्रकार से रक्षा करे। अतः राष्ट्र को हर प्रकार से सुरक्षित रखना ही हमारा "राष्ट्र-धर्म" है।
भारत के विषय में कहा जाता है कि:-
"साक्षी है इतिहास हमारा, हिन्द को युद्ध नहीं भाता है।
किन्तु अपनी आन के लिये, इसे जान देना आता है।"
हमारे वीर सैनिकों ने इसी पंक्ति को चरितार्थ करते हुए सरहद रक्षा में अपनी जो बहुमूल्य कुर्बानी दी है, उसपर भारत को गर्व है तथा राष्ट्र उन वीर शहीदों को शत् शत् नमन करता है तथा अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता है। इस सन्दर्भ में मुझे शिर्फ़ इतना हीं कहना है:-
"हम आतंक से नहीं डरनवाले, भारत में जोश जवानी है।
बंद करो घुसपैठ आतंक, ललकार रहा हिंदुस्तानी है।"
जय हिन्द! जय जवान! जय भारत-माता की!
पंडित मनोज मणि तिवारी बेतिया (बिहार)
Tuesday, October 13, 2015
शारदीय-नवरात्र में कुमारी-पूजन का विधान और महत्व
हमारे हिन्दू धर्म-शास्त्रों के अनुसार प्रतिवर्ष आश्विन शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन नवरात्र का आरम्भ होता है तथा शुक्लपक्ष नवमी तिथि को होमादि कार्यों के साथ नवरात्र संपन्न होता है।अगले दिन दशमी तिथि में नवरात्र-व्रत का पारणा कर बड़े धूमधाम से "विजयादशमी" का परम पुनीत पर्व मनाया जाता है।इस नवरात्र में शक्तिस्वरूपा देवी के विभिन्न स्वरूपों का प्रतिदिन पूजन किया जाता है।नवरात्र में भगवती का अनुष्ठान, कलश-स्थापन, पूजन, व्रत, कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन कराने से सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी अन्यान्य मनुष्यों को भी अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए धर्म, अर्थ, काममोक्ष प्रदान करते हुए पुत्र-पौत्र प्राप्ति का वरदान देती है।
नवरात्र-पूजा के दौरान शक्ति ,सामर्थ्य, स्थान, भाषाऔर उच्चारण के अनुसार भगवती की पूजन, कलश-स्थापन, व्रत आदि में लगभग समानता यानि एकरूपता देखने को मिलती है, परंतु कुमारी-पूजा और कुमारी-भोजन में बड़ी विभिन्नताएं देखने को मिलती है। कहीं कुमारी-पूजन और कुमारी भोजन अष्टमी तिथि को कराया जाता है तो कहीं नवमी और कहीं दशमी तिथि को।
हमारे धर्म-शास्त्रों में नवरात्र के दौरान कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन का विशेष महत्व लिखा गया है। जैसे :-
1:- कुमारी-पूजन कब और कैसे करें।
2:-कितने उम्र तक की कुमारी का पूजन करें।
3:-जिस दिन कुमारियों का पूजन करें, उस दिन उन्हें किस नाम से सम्बोधन कर पूजन करें।
4:-कुमारी-पूजन में कितनी संख्या का विधान है और कब-कब।
5:-किस-किस प्रयोजन में किस-किस जातिवर्ग की कुमारियों का पूजन करना चाहिए।
इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर हमारे धर्म-ग्रंथों में कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन का विधान लिखा गया है।"मदनरत्न" और "देवीपुराण" में लिखा गया है कि:-हे इंद्र! कन्या के सूर्य में यानि आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेके नवरात्र पर्यन्त व्रतों का धारण करें, भूमि में शयन करें और प्रसन्नता पूर्वक कुमारियों को निमंत्रण देकर उनकी पूजन कर, उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन करावें और वस्त्र, आभूषण,द्रव्य आदि देकर प्रतिदिन उनको संतुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
"स्कन्दपुराण" का वाक्य लेकर "हेमाद्रि" में कहा गया है कि:- नवरात्र में प्रतिदिन एक-एक कन्या की पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक कन्या की वृद्धि करते हुए पूजन करें अथवा प्रतिदिन दोगुनी या तिनगुनि संख्या में कन्या का पूजन करें अथवा प्रतिदिन नौ-नौ कन्याओं की पूजन करनी चाहिए। ऐसा कुमारी-पूजन करने से सबका अलग-अलग फल प्राप्त होता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन एक हीं कन्या का पूजन करता है उसे लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन एक-एक कन्या की वृद्धि करते हुए कुमारी-पूजन करता है उसे कुशलता, शांति, कलह से मुक्ति, विजय आदि की प्राप्ति होती है। जो प्रतिदिन दोगुनी और तिनगुनि संख्या में कन्याओं का पूजन करता है उसे सब प्रकार के सुख, ऐश्वर्य, ख्याति आदि की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन नौ-नौ की संख्या में प्रतिदिन कन्याओं की पूजन करता है उसे भूमि, भवन, स्थिर संपत्ति का लाभ होता है।
कुमारी-पूजन में एक वर्ष की कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे गंध, पुष्प, फल, द्रव्य आदि से प्रीति और ज्ञान नहीं होता है। कुमारी पूजन के लिए दो वर्ष की कन्या से लेकर दस वर्ष की कन्यापर्यन्त पूजने योग्य है, अन्य नहीं।
नवरात्र के प्रथम दिन कुमारी-पूजन को "कुमारिका" नाम से सम्बोधन कर पूजन करें। दूसरे दिन कुमारी-पूजन को "त्रिमूर्ति" नामक सम्बोधन से पूजन करें। तीसरे दिन कुमारी-पूजन को "कल्याणी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। चौथे दिन कुमारी-पूजन को "रोहिणी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। पांचवें दिन कुमारी-पूजन को "काली" नामक सम्बोधन से पूजन करें। छठे दिन कुमारी-पूजन को "चण्डिका" नामक सम्बोधन से पूजन करें। सातवें दिन कुमारी-पूजन को "शाम्भवी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। आठवें दिन कुमारी-पूजन को "दुर्गा"नामक सम्बोधन से पूजन करें। नौवें दिन कुमारी-पूजन को "श्रीमतिसुभद्रादेवी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। प्रत्येक दिन कुमारी-पूजन में अक्षत, गंध, पुष्प, फल, द्रव्य आदि का प्रयोग करें तथा मीठा भोजन कराकर, दक्षिणा,वस्त्र,आभूषण आदि से संतुष्ट करना चाहिए।
कुमारी-पूजन में सब प्रकार की कामनाओं की पूर्ति, आयु-वृद्धि, यश, मान, पद, प्रतिष्ठा,सब कार्यों की सिद्धि के लिए "ब्राह्मणी-कन्या" का, युद्व में विजय के लिए "क्षत्री-कन्या" का, द्रव्य-लाभ के लिए "वैश्य-कन्या" का और पुत्र-प्राप्ति यानि संतान वृद्धि के लिए "शुद्र-कन्या" का पूजन एवं भोजन कराना चाहिए।
जय कुमारी-पूजन की।। जय दुर्गा-माता की।
पंडित मनोज मणि तिवारी,बेतिया(बिहार)
शारदीय नवरात्र : कलशस्थापन एवं विशेष मुहूर्त
हमारे हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन से शारदीय नवरात्र का आरम्भ होता है। इस वर्ष 2015 यानि संवत् 2072 में इसका आरम्भ दिनांक 13 अक्टूबर दिन-मंगलवार से आरम्भ हो रहा है। इस वर्ष प्रतिपदा तिथि की वृद्धि हो गयी है, इसलिए यह नवरात्र 10 दिन का हो जायेगा परंतु दशमी तिथि का क्षय हो जाने से यह पक्ष 15 दिन का ही होगा।प्रतिपदा यानि दिनांक 13 अक्टूबर मंगलवार को चित्रा नक्षत्र और वैघृति योग है, जो कलशस्थापन के लिए वर्जित है। पवित्र ग्रन्थ "रुद्रयामल" में लिखा है कि यदि प्रतिपदा में चित्रा नक्षत्र और वैधृति युक्त हो तो कलश-स्थापन मध्यान्ह समय में जब अभिजित मुहूर्त हो तो करना चाहिए। अतः इस पवित्र ग्रन्थ के अनुसार इस नवरात्र में कलश-स्थापन का शुभ मुहूर्त यानि अभिजित् मुहूर्त दिन में 11बजकर 37 मिनट से दिन 12 बजकर 23 मिनट तक है।इसी अवधि में कलश-स्थापन करना कल्याणप्रद होगा।
इस वर्ष नवरात्र का आरम्भ मंगलवार को हो रहा है अतः माँ भगवती का आगमन घोड़े की सवारी पर होगी जो धार्मिक दृष्टिकोण से छत्रभंग यानि राज्यभंग कारक है।
दिनांक 19 अक्टूबर 2015 दिन-सोमवार को मूल नक्षत्र होने से उस दिन सरस्वती का स्थापन करना चाहिए। पवित्र "देवीपुराण" के वचन से निर्णयामृत में कहा गया है कि मूल में देवी का स्थापन,पूर्वाषाढ़ा में पूजन, उत्तराषाढ़ा में बलिदान और श्रवण में विसर्जन करना चाहिये। इसी प्रकार पवित्र "रुद्रयामल" में भी लिखा गया है कि मूल नक्षत्र में सरस्वती का आवाहन कर श्रवण नक्षत्र तक उनकी पूजन करें। ऐसा करने से उत्तम बुद्धि और उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है। शिष्टों की आज्ञा है कि मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में सरस्वती का आवाहन तथा श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में विसर्जन करें। "चिंतामणि" में ब्रह्माण्ड पुराण का वाक्य है कि जब श्रवण नक्षत्र का आदि भाग रात्रि में हो तो देवी का विसर्जन अगले दिन महोत्सव में करना चाहिये।
इस नवरात्र में दिनांक 20 अक्टूबर दिन- मंगलवार को अष्टमी तिथि में "महानिशा पूजा" की जायेगी और दिनांक 21 अक्टूबर दिन-बुधवार को दिन में 08 बजकर41 मिनट के बाद से "महानवमी" में हवन आदि कार्य किये जायेंगे।यह हवन दिनांक 22 अक्टूबर को प्रातः 07 बजकर 10 मिनट के पहले तक किया जा सकता है। दिनांक 22 अक्टूबर दिन-गुरुवार को प्रातः 07 बजकर 11 मिनट से दशमी तिथि में "विजयादशमी" का परम पुनीत पर्व मनाया जायेगा तथा नवरात्र-व्रत की पारणा की जायेगी।इस दिन दुर्गा-प्रतिमा विसर्जन, नीलकंठ-दर्शन, शम्मी-पूजन,अपराजिता-पूजन,विजय-यात्रा आदि का विशेष महत्व और उत्तम मुहूर्त है।
जय शारदीय नवरात्र की। जय दुर्गा माता की।
पंडित मनोज मणि तिवारी,बेतिया(बिहार)
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Monday, September 28, 2015
ज्योतिषीय दृष्टि में वर्त्तमान आश्विन मास का प्रभाव
भारतीय ज्योतिषीय गणना के अनुसार वर्त्तमान यानि श्रीसंवत 2072 में पवित्र आश्विन मास का प्रारम्भ दिनांक 29-09-2015 से हो रहा है तथा इस मास का अंत दिनांक 27-10-2015 को हो रहा है। इस मास में पाँच मंगलवार का होना अशुभ का संकेत है, साथ हीं इस मास का प्रारम्भ मंगलवार से हो रहा है यानि आश्विन मास का पहला सूर्योदय मंगलवार को हो रहा है और इस मास का अंत भी मंगलवार को हीं हो रहा है यानि इस मास का अंतिम सूर्यास्त भी मंगलवार को हीं हो रहा है।
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार मंगल एक क्रूर पापग्रह है जो युद्ध, झगड़ा- झंझट, मारपीट, विद्रोह, विस्फोट ,अशांति, उग्रता, शौर्य, बाहुबल,कुछ रोग, मांसपेशियों,साहस, जीवठ आदि का कारक होता है,इसलिये जिस मास का प्रारम्भ इस ग्रह् के दिन से हो और अंत भी इसी ग्रह के दिन से हो तथा मास में अधिकतम दिन भी इसी ग्रह का यानि पाँच मंगलवार आवे तो उस मास में युद्ध, आपसी-मतभेद,मारपीट, जगह-जगह उग्र घटनाएं, अविश्वास, आतंकी घटनाएं, नक्सली-विद्रोह,विस्फोटक-घटनाएं ,अग्निकांड,सैन्य-बल की कार्यवाही और सैन्य-बलों की क्षति भी होती है।इसके अतिरिक्त इस मास में व्यापक जान-हानि, धन-हानि,वर्ग-संघर्ष या जातीय-तनाव,प्राकृतिक-आपदा, भूकंप या कोई यान-दुर्घटना, विषैले-जीवोँ का प्रकोप, किसी जनप्रिय व्यक्ति की क्षति, स्त्रियों को कष्ट, शासक-वर्ग में द्वेषता, राज्यों में मतभेद, सीमा पर तनाव या झंझट आदि अशुभ फलों की भी संभावनाएं बनती हैं। ऐसे योग होने से देश में हड़ताल, किसी नए घोटाले का उजागर होना, सरकारी-कार्यों में बाधा आदि भी उत्पन्न हो सकता है।
चूँकि मंगल ग्रहों में सेनापति होता है,अतएव लाखों विषम परिस्थितियों के वावजूद सेना की विजय होती है यानि भारतीय सेना के द्वारा इस अवधी में कई शौर्य-कार्यों का मिसाल भी सामने आ सकता है। मंगल का रंग लाल होता है अतएव लाल पदार्थों की कीमतों में वृद्धि भी हो सकती है। चूँकि सेनापति का शासकीय कार्यो के निष्पादन के साथ-साथ मनोरंजन की ओर भी झुकाव होता है इसलिए इस अवधी में किसी नवीन मनोरंजन के साधनों का विकास, नई संचार व्यवस्था और यातायात के संसाधनों में वृद्धि होने की भी संभावनाएं बनती हैं।
इस महीने की 29 तारीख के साथ-साथ अक्टूबर महीने में दिनांक 3, 4, 6, 10, 11, 13, 17, 20, 23, 24 और 27 कुछ अनिष्टकारी प्रभाव दे सकता है।। इति-शुभम् ।।
पंडित मनोज मणि तिवारी,बेतिया(बिहार)
Saturday, May 30, 2015
ज्योतिषीय दृष्टि में 30 मई से 16 जून 2015 तक का प्रभाव
।। इति- शुभम ।।
।। पंडित मनोज मणि तिवारी, बेतिया (बिहार)
Thursday, January 29, 2015
कुण्डली में ग्रहों की दृष्टि एवं उच्च राशि में ग्रह-फल
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुण्डली का फलादेश का विचार करने के लिए उस कुंडली में अवस्थित ग्रहों की दृष्टि किस-किस भाव पर पड़ रही है, इसकी जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। साथ हीं यह भी देखना चाहिए कि उस कुंडली में कितने ग्रह अपनी उच्च राशि में हैं और कितने ग्रह अपनी नीच राशि में अवस्थित हैं।कौन ग्रह किस राशि में उच्च होता है तथा किस राशि में नीच होता है तथा उसका फल क्या होता है, इसकी विस्तृत जानकारी नीचे अंकित की जा रही है:- सूर्य जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। सूर्य मेष राशि में उच्च कहलाता है तथा तुला राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि सूर्य उच्च का होता है यानि मेष राशि में होता है तो वह व्यक्ति भाग्यवान, धनी, नेतृत्व शक्ति संपन्न, विद्वान, सरकार में या समाज में उच्च पद प्राप्त करनेवाला, प्रसिद्ध, उन्नति करने वाला, प्रतिष्ठित, यशस्वी और सुखी होता है। ऐसे व्यक्ति को अन्याय, अधर्म, दुराचार, हत्या, व्यभिचार नहीं करना चाहिए नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देते हैं। यदि सूर्य अपनी नीच राशि यानि तुला राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
चन्द्रमा जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। चन्द्रमा वृष राशि में उच्च होता है तथा वृश्चिक राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि चन्द्रमा उच्च का होता है यानि वृष राशि में होता है तो वह व्यक्ति अलंकार-प्रिय, मिष्ठान भोजी, विलासी, माननीय, कोमल ह्रदय वाला, विदेश-यात्रा करनेवाला, यात्रा-प्रिय, सुखी और चपल होता है। ऐसे व्यक्ति को माता, सास, दादी या किसी औरत के साथ अन्याय या अपमान नहीं करना चाहिये नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देते हैं। यदि चन्द्रमा अपनी नीच राशि अर्थात वृश्चिक राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते है।
मंगल जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से सातवें, चौथे और आठवें भाव को देखता है।मंगल मकर राशि में उच्च होता है तथा कर्क राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि मंगल उच्च का होता है यानि मकर राशि में होता है तो वह व्यक्ति शक्तिमान, परिश्रमी, धैर्यवान, सरकार द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाला, पुलिस या सेना में कार्य करने वाला, विजेता, लड़ाई में विजय पाने वाला, साहसी और क्रोधी होता है। ऐसे व्यक्ति को अपने सगे भाई, मित्र, साला, बहनोई, रिश्तेदार और गुरु के साथ विश्वासघात या अपमान नहीं करना चाहिए, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ प्रभाव देना छोड़ देते हैं। यदि मंगल अपनी नीच राशि यानि कर्क राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते है।
बुध जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। बुध कन्या राशि में उच्च होता है तथा मीन राशि में नीच होता है। किसी के जन्म कुंडली में यदि बुध उच्च का होता है यानि कन्या राशि में होता है तो वह बुद्धिमान, लेखक, प्रकाशन संबंधी कार्य करने वाला, राजा तुल्य सुख भोगने वाला, वंश वृद्धि करने वाला, प्रसन्न रहने वाला, गणित संबंधी कार्य करनेवाला, व्यापार करनेवाला, धन एवं जमीन बढ़ाने वाला, शत्रुनाशक और भौतिक सुख भोगनेवाला होता है। ऐसे व्यक्ति को अपनी पुत्री, बहन, साली, बुआ या किसी भी कन्या को कष्ट नहीं देना चाहिये, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ फल देना छोड़ देते हैं। यदि बुध अपनी नीच राशि यानि मीन राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
गुरु जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से सातवें, पाँचवें और नौवें भाव को देखता है। गुरु यानि बृहस्पति कर्क राशि में उच्च होता है तथा मकर राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि गुरु उच्च का होता है यानि कर्क राशि में होता है तो वह विद्वान, शासक, मंत्री, शासनप्रिय, सुशील, उदार, सुखी, ऐश्वर्यशाली, स्वभाव से अधिकारप्रिय, नेतृत्व करनेवाले, संचालनकर्ता, न्याय प्रिय, प्रशासनिक अधिकारी, न्यायाधीश या वकील आदि होता है। ऐसे व्यक्ति को धर्म, देवी-देवता, ब्राह्मण, गुरु, साधु-सन्यासी, पिता, चाचा, दादा और श्रेठ जनों को कष्ट या अपमान नहीं करना चाहिये, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ फल देना छोड़ देते हैं। यदि गुरु अपनी नीच राशि यानि मकर राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
शुक्र जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से शिर्फ़ सातवें भाव को देखता है। शुक्र मीन राशि में उच्च होता है तथा कन्या राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि शुक्र उच्च का होता है यानि मीन राशि में होता है तो वह सुन्दर, प्रेमी, कामी, विलासी, भाग्यवान, संगीतप्रिय, शान-शौकतवाला, खुशबू का प्रेमी, सैर करनेवाला, ऐश्वर्यशाली, भूमि-भवन से युक्त, कई वाहनों का स्वामी, सुखी और धनी होता है। ऐसे व्यक्ति को अपनी स्त्री या किसी भी स्त्री को कष्ट पीड़ा नहीं देनी चाहिये। स्त्री-समाज को अपमानित नहीं करना चाहिये, नहीं तो उसके उच्च ग्रह अपना शुभ फल देना छोड़ देते हैं। यदि शुक्र अपनी नीच राशि यानि कन्या राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
शनि जिस भाव में बैठा होता है वहाँ से सातवें, तीसरे और दशवें भाव को देखता है। शनि तुला राशि में उच्च होता है तथा मेष राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि शनि उच्च का होता है यानि तुला राशि में होता है तो वह अधिपति, जमींदार, राजा तुल्य शक्तिमान, यशस्वी, परम-शक्तिशाली, भाग्यशाली, चिंतन करनेवाला, पुर्ण प्रगति करनेवाला, जादूगर, इंजिनियर, रसायन-शास्त्री, साहित्यकार, वैज्ञानिक, पूर्ण रहस्यवादी आदि होता है। ऐसे व्यक्ति को चाचा और निम्न वर्ग के लोगों को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहिये साथ हीं उसे मांस-मदिरा तथा पर-स्त्री गमन से बचना चाहिए, नहीं तो उसका शनि अपना शुभ फल देना छोड़ देता है। यदि शनि अपनी नीच राशि यानि मेष राशि में होता है तो इसके विपरीत फल प्राप्त होते हैं।
राहु एक छाया ग्रह है। राहु मिथुन राशि में उच्च होता है तथा धनु राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि राहु उच्च का होता है यानि मिथुन राशि में होता है तो वह शूरवीर, पराक्रमी, कठोर एवं उद्दत स्वभाव वाला, साहसी, ताकतवर, मानी-अभिमानी, कीर्ति स्थापित करनेवाला, संशयी, तीव्र निर्णय लेनेवाला, धन बढ़ाने वाला परंतु किसी का परवाह नहीं करनेवाला होता है। ऐसे व्यक्ति को अपनी ताकत के बल पर किसी को सताना नहीं चाहिए तथा अवैध सम्बन्ध से बचना चाहिये, नहीं तो उच्च राहु का शुभ फल शीघ्र हीं समाप्त हो जाता है।
केतु भी एक छाया ग्रह है। केतु धनु राशि में उच्च होता है तथा मिथुन राशि में नीच होता है। किसी के जन्म-कुंडली में यदि केतु उच्च का होता है यानि धनु राशि में होता है तो वह धनी, धन-संग्रह करनेवाला, भौतिक उन्नति करनेवाला, भ्रमणशील परंतु नीच स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्ति को नीच कर्म से बचना चाहिये नहीं तो उसके द्वारा संग्रहित दौलत शीघ्र हीं नष्ट हो जाता है।
इसप्रकार इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर ही किसी भी व्यक्ति की कुंडली के सन्दर्भ में फलादेश किया जाता है।इसके बाद के लेख में सभी ग्रहों का पुर्ण परिचय और उसका मानव-जीवन पर प्रभाव के बारे में लिखने का प्रयत्न करूँगा। आप सबों से इस कार्य में सुझाव सादर आमंत्रित है ताकि बेहतर लेख दे सकूँ। धन्यवाद...
।। इति-शुभम् ।।
पंडित मनोज मणि तिवारी, बेतिया (बिहार)