हमारे हिन्दू धर्म-शास्त्रों के अनुसार प्रतिवर्ष आश्विन शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन नवरात्र का आरम्भ होता है तथा शुक्लपक्ष नवमी तिथि को होमादि कार्यों के साथ नवरात्र संपन्न होता है।अगले दिन दशमी तिथि में नवरात्र-व्रत का पारणा कर बड़े धूमधाम से "विजयादशमी" का परम पुनीत पर्व मनाया जाता है।इस नवरात्र में शक्तिस्वरूपा देवी के विभिन्न स्वरूपों का प्रतिदिन पूजन किया जाता है।नवरात्र में भगवती का अनुष्ठान, कलश-स्थापन, पूजन, व्रत, कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन कराने से सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी अन्यान्य मनुष्यों को भी अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए धर्म, अर्थ, काममोक्ष प्रदान करते हुए पुत्र-पौत्र प्राप्ति का वरदान देती है।
नवरात्र-पूजा के दौरान शक्ति ,सामर्थ्य, स्थान, भाषाऔर उच्चारण के अनुसार भगवती की पूजन, कलश-स्थापन, व्रत आदि में लगभग समानता यानि एकरूपता देखने को मिलती है, परंतु कुमारी-पूजा और कुमारी-भोजन में बड़ी विभिन्नताएं देखने को मिलती है। कहीं कुमारी-पूजन और कुमारी भोजन अष्टमी तिथि को कराया जाता है तो कहीं नवमी और कहीं दशमी तिथि को।
हमारे धर्म-शास्त्रों में नवरात्र के दौरान कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन का विशेष महत्व लिखा गया है। जैसे :-
1:- कुमारी-पूजन कब और कैसे करें।
2:-कितने उम्र तक की कुमारी का पूजन करें।
3:-जिस दिन कुमारियों का पूजन करें, उस दिन उन्हें किस नाम से सम्बोधन कर पूजन करें।
4:-कुमारी-पूजन में कितनी संख्या का विधान है और कब-कब।
5:-किस-किस प्रयोजन में किस-किस जातिवर्ग की कुमारियों का पूजन करना चाहिए।
इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर हमारे धर्म-ग्रंथों में कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन का विधान लिखा गया है।"मदनरत्न" और "देवीपुराण" में लिखा गया है कि:-हे इंद्र! कन्या के सूर्य में यानि आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेके नवरात्र पर्यन्त व्रतों का धारण करें, भूमि में शयन करें और प्रसन्नता पूर्वक कुमारियों को निमंत्रण देकर उनकी पूजन कर, उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन करावें और वस्त्र, आभूषण,द्रव्य आदि देकर प्रतिदिन उनको संतुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
"स्कन्दपुराण" का वाक्य लेकर "हेमाद्रि" में कहा गया है कि:- नवरात्र में प्रतिदिन एक-एक कन्या की पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक कन्या की वृद्धि करते हुए पूजन करें अथवा प्रतिदिन दोगुनी या तिनगुनि संख्या में कन्या का पूजन करें अथवा प्रतिदिन नौ-नौ कन्याओं की पूजन करनी चाहिए। ऐसा कुमारी-पूजन करने से सबका अलग-अलग फल प्राप्त होता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन एक हीं कन्या का पूजन करता है उसे लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन एक-एक कन्या की वृद्धि करते हुए कुमारी-पूजन करता है उसे कुशलता, शांति, कलह से मुक्ति, विजय आदि की प्राप्ति होती है। जो प्रतिदिन दोगुनी और तिनगुनि संख्या में कन्याओं का पूजन करता है उसे सब प्रकार के सुख, ऐश्वर्य, ख्याति आदि की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन नौ-नौ की संख्या में प्रतिदिन कन्याओं की पूजन करता है उसे भूमि, भवन, स्थिर संपत्ति का लाभ होता है।
कुमारी-पूजन में एक वर्ष की कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे गंध, पुष्प, फल, द्रव्य आदि से प्रीति और ज्ञान नहीं होता है। कुमारी पूजन के लिए दो वर्ष की कन्या से लेकर दस वर्ष की कन्यापर्यन्त पूजने योग्य है, अन्य नहीं।
नवरात्र के प्रथम दिन कुमारी-पूजन को "कुमारिका" नाम से सम्बोधन कर पूजन करें। दूसरे दिन कुमारी-पूजन को "त्रिमूर्ति" नामक सम्बोधन से पूजन करें। तीसरे दिन कुमारी-पूजन को "कल्याणी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। चौथे दिन कुमारी-पूजन को "रोहिणी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। पांचवें दिन कुमारी-पूजन को "काली" नामक सम्बोधन से पूजन करें। छठे दिन कुमारी-पूजन को "चण्डिका" नामक सम्बोधन से पूजन करें। सातवें दिन कुमारी-पूजन को "शाम्भवी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। आठवें दिन कुमारी-पूजन को "दुर्गा"नामक सम्बोधन से पूजन करें। नौवें दिन कुमारी-पूजन को "श्रीमतिसुभद्रादेवी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। प्रत्येक दिन कुमारी-पूजन में अक्षत, गंध, पुष्प, फल, द्रव्य आदि का प्रयोग करें तथा मीठा भोजन कराकर, दक्षिणा,वस्त्र,आभूषण आदि से संतुष्ट करना चाहिए।
कुमारी-पूजन में सब प्रकार की कामनाओं की पूर्ति, आयु-वृद्धि, यश, मान, पद, प्रतिष्ठा,सब कार्यों की सिद्धि के लिए "ब्राह्मणी-कन्या" का, युद्व में विजय के लिए "क्षत्री-कन्या" का, द्रव्य-लाभ के लिए "वैश्य-कन्या" का और पुत्र-प्राप्ति यानि संतान वृद्धि के लिए "शुद्र-कन्या" का पूजन एवं भोजन कराना चाहिए।
जय कुमारी-पूजन की।। जय दुर्गा-माता की।
पंडित मनोज मणि तिवारी,बेतिया(बिहार)