Friday, October 16, 2015

राष्ट्रधर्म और आतंकवाद

                भारत एक शांतिप्रिय राष्ट्र है।"अहिंसा परमो धर्मः" यहाँ का सन्देश है। "अतिथि देवो भवः" यहाँ का नारा है। ऐसे में हमारे पड़ोसी मुल्क, हमारी शांति, भाईचारा, अखंडता और विकास को भंग करने के लिए सरहद पर घुसपैठी आतंकवाद का सहारा ले रहा है।इस आतंक से सीमा पर हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं। ऐसे समय में पुरे देशवासी धैर्य से आतंकवाद का डटकर सामना कर रहे हैं। इस धैर्य को पड़ोसी हमारी कमजोरी ना समझें।एक छोटी-सी चिनगारी बड़े लपट का रूप धारण कर बड़े विनाश का कारण बन जाती है।
              इस विषम परिस्थिति में किसी ज्योतिषी, कवि और लेखक की लेखनी खामोश नहीं रह सकती है क्योंकि राष्ट्र है तो हम हैं। राष्ट्र सुरक्षित रहेगा तो हमारा अस्तित्व भी कायम रहेगा। हमलोग "जननी जन्मभूमि" के सिद्धान्त को माननेवाले हैं अर्थात् हमारी जन्मभूमि (मातृभूमि) भी माँ है इसलिए भारत को "भरत-माता" भी कहते हैं। प्रत्येक पुत्र का कर्तव्य होता है कि अपनी माता की सब प्रकार से रक्षा करे। अतः राष्ट्र को हर प्रकार से सुरक्षित रखना ही हमारा "राष्ट्र-धर्म" है।
भारत के विषय में कहा जाता है कि:-
                                                "साक्षी है इतिहास हमारा, हिन्द को युद्ध नहीं भाता है।
                                                  किन्तु अपनी आन के लिये, इसे जान देना आता है।"
            हमारे वीर सैनिकों ने इसी पंक्ति को चरितार्थ करते हुए सरहद रक्षा में अपनी जो बहुमूल्य कुर्बानी दी है, उसपर भारत को गर्व है तथा राष्ट्र उन वीर शहीदों को शत् शत् नमन करता है तथा अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता है। इस सन्दर्भ में मुझे शिर्फ़ इतना हीं कहना है:-

                                                  "हम आतंक से नहीं डरनवाले, भारत में जोश जवानी है।
                                                  बंद करो घुसपैठ आतंक, ललकार रहा हिंदुस्तानी है।"
                                                
 जय हिन्द! जय जवान! जय भारत-माता की!

                                                     पंडित मनोज मणि तिवारी बेतिया (बिहार)

Tuesday, October 13, 2015

शारदीय-नवरात्र में कुमारी-पूजन का विधान और महत्व

           हमारे हिन्दू धर्म-शास्त्रों के अनुसार प्रतिवर्ष आश्विन शुक्लपक्ष प्रतिपदा के दिन नवरात्र का आरम्भ होता है तथा शुक्लपक्ष नवमी तिथि को होमादि कार्यों के साथ नवरात्र संपन्न होता है।अगले दिन दशमी तिथि में नवरात्र-व्रत का पारणा कर बड़े धूमधाम से "विजयादशमी" का परम पुनीत पर्व मनाया जाता है।इस नवरात्र में शक्तिस्वरूपा देवी के विभिन्न स्वरूपों का प्रतिदिन पूजन किया जाता है।नवरात्र में भगवती का अनुष्ठान, कलश-स्थापन, पूजन, व्रत, कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन कराने से सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी अन्यान्य मनुष्यों को भी अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए धर्म, अर्थ, काममोक्ष प्रदान करते हुए पुत्र-पौत्र प्राप्ति का वरदान देती है।
                 नवरात्र-पूजा के दौरान शक्ति ,सामर्थ्य, स्थान, भाषाऔर उच्चारण के अनुसार भगवती की पूजन, कलश-स्थापन, व्रत आदि में लगभग समानता यानि एकरूपता देखने को मिलती है, परंतु कुमारी-पूजा और कुमारी-भोजन में बड़ी विभिन्नताएं देखने को मिलती है। कहीं कुमारी-पूजन और कुमारी भोजन अष्टमी तिथि को कराया जाता है तो कहीं नवमी और कहीं दशमी तिथि को।
                   हमारे धर्म-शास्त्रों में नवरात्र के दौरान कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन का विशेष महत्व लिखा गया है। जैसे :-
1:- कुमारी-पूजन कब और कैसे करें।
2:-कितने उम्र तक की कुमारी का पूजन करें।
3:-जिस दिन कुमारियों का पूजन करें, उस दिन उन्हें किस नाम से सम्बोधन कर पूजन करें।
4:-कुमारी-पूजन में कितनी संख्या का विधान है और कब-कब।
5:-किस-किस प्रयोजन में किस-किस जातिवर्ग की कुमारियों का पूजन करना चाहिए।
                    इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर हमारे धर्म-ग्रंथों में कुमारी-पूजन और कुमारी-भोजन का विधान लिखा गया है।"मदनरत्न" और "देवीपुराण" में लिखा गया है कि:-हे इंद्र! कन्या के सूर्य में यानि आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेके नवरात्र पर्यन्त व्रतों का धारण करें, भूमि में शयन करें और प्रसन्नता पूर्वक कुमारियों को निमंत्रण देकर उनकी पूजन कर, उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन करावें और वस्त्र, आभूषण,द्रव्य आदि देकर प्रतिदिन उनको संतुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
                  "स्कन्दपुराण" का वाक्य लेकर "हेमाद्रि" में कहा गया है कि:- नवरात्र में प्रतिदिन एक-एक कन्या की पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक कन्या की वृद्धि करते हुए पूजन करें अथवा प्रतिदिन दोगुनी या तिनगुनि संख्या में कन्या का पूजन करें अथवा प्रतिदिन नौ-नौ कन्याओं की पूजन करनी चाहिए। ऐसा कुमारी-पूजन करने से सबका अलग-अलग फल प्राप्त होता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन एक हीं कन्या का पूजन करता है उसे लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन एक-एक कन्या की वृद्धि करते हुए कुमारी-पूजन करता है उसे कुशलता, शांति, कलह से मुक्ति, विजय आदि की प्राप्ति होती है। जो प्रतिदिन दोगुनी और तिनगुनि संख्या में कन्याओं का पूजन करता है उसे सब प्रकार के सुख, ऐश्वर्य, ख्याति आदि की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन नौ-नौ की संख्या में प्रतिदिन कन्याओं की पूजन करता है उसे भूमि, भवन, स्थिर संपत्ति का लाभ होता है।
                    कुमारी-पूजन में एक वर्ष की कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे गंध, पुष्प, फल, द्रव्य आदि से प्रीति और ज्ञान नहीं होता है। कुमारी पूजन के लिए दो वर्ष की कन्या से लेकर दस वर्ष की कन्यापर्यन्त पूजने योग्य है, अन्य नहीं।
                   नवरात्र के प्रथम दिन कुमारी-पूजन को "कुमारिका" नाम से सम्बोधन कर पूजन करें। दूसरे दिन कुमारी-पूजन को "त्रिमूर्ति" नामक सम्बोधन से पूजन करें। तीसरे दिन कुमारी-पूजन को "कल्याणी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। चौथे दिन कुमारी-पूजन को "रोहिणी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। पांचवें दिन कुमारी-पूजन को "काली" नामक सम्बोधन से पूजन करें। छठे दिन कुमारी-पूजन को "चण्डिका" नामक सम्बोधन से पूजन करें। सातवें दिन कुमारी-पूजन को "शाम्भवी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। आठवें दिन कुमारी-पूजन को "दुर्गा"नामक सम्बोधन से पूजन करें। नौवें दिन कुमारी-पूजन को "श्रीमतिसुभद्रादेवी" नामक सम्बोधन से पूजन करें। प्रत्येक दिन कुमारी-पूजन में अक्षत, गंध, पुष्प, फल, द्रव्य आदि का प्रयोग करें तथा मीठा भोजन कराकर, दक्षिणा,वस्त्र,आभूषण आदि से संतुष्ट करना चाहिए।
                    कुमारी-पूजन में सब प्रकार की कामनाओं की पूर्ति, आयु-वृद्धि, यश, मान, पद, प्रतिष्ठा,सब कार्यों की सिद्धि के लिए "ब्राह्मणी-कन्या" का, युद्व में विजय के लिए "क्षत्री-कन्या" का, द्रव्य-लाभ के लिए "वैश्य-कन्या" का और पुत्र-प्राप्ति यानि संतान वृद्धि के लिए "शुद्र-कन्या" का पूजन एवं भोजन कराना चाहिए।
               जय कुमारी-पूजन की।। जय दुर्गा-माता की।
               पंडित मनोज मणि तिवारी,बेतिया(बिहार)

शारदीय नवरात्र : कलशस्थापन एवं विशेष मुहूर्त

        हमारे हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन से शारदीय नवरात्र का आरम्भ होता है। इस वर्ष 2015 यानि संवत् 2072 में इसका आरम्भ दिनांक 13 अक्टूबर दिन-मंगलवार से आरम्भ हो रहा है। इस वर्ष प्रतिपदा तिथि की वृद्धि हो गयी है, इसलिए यह नवरात्र 10 दिन का हो जायेगा परंतु दशमी तिथि का क्षय हो जाने से यह पक्ष 15 दिन का ही होगा।प्रतिपदा यानि दिनांक 13 अक्टूबर मंगलवार को चित्रा नक्षत्र और वैघृति योग है, जो कलशस्थापन के लिए वर्जित है। पवित्र ग्रन्थ "रुद्रयामल" में लिखा है कि यदि प्रतिपदा में चित्रा नक्षत्र और वैधृति युक्त हो तो कलश-स्थापन मध्यान्ह समय में जब अभिजित मुहूर्त हो  तो करना चाहिए। अतः इस पवित्र ग्रन्थ के अनुसार इस नवरात्र में कलश-स्थापन का शुभ मुहूर्त यानि अभिजित् मुहूर्त दिन में 11बजकर 37 मिनट से दिन 12 बजकर 23 मिनट तक है।इसी अवधि में कलश-स्थापन करना कल्याणप्रद होगा।
                 इस वर्ष नवरात्र का आरम्भ मंगलवार को हो रहा है अतः माँ भगवती का आगमन घोड़े की सवारी पर होगी जो धार्मिक दृष्टिकोण से छत्रभंग यानि राज्यभंग कारक है
                 दिनांक 19 अक्टूबर 2015 दिन-सोमवार को मूल नक्षत्र होने से उस दिन सरस्वती का स्थापन करना चाहिए। पवित्र "देवीपुराण" के वचन से निर्णयामृत में कहा गया है कि मूल में देवी का स्थापन,पूर्वाषाढ़ा में पूजन, उत्तराषाढ़ा में बलिदान और श्रवण में विसर्जन करना चाहिये। इसी प्रकार पवित्र "रुद्रयामल" में भी लिखा गया है कि मूल नक्षत्र में सरस्वती का आवाहन कर श्रवण नक्षत्र तक उनकी पूजन करें। ऐसा करने से उत्तम बुद्धि और उत्तम विद्या की प्राप्ति होती है। शिष्टों की आज्ञा है कि मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में सरस्वती का आवाहन तथा श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में विसर्जन करें। "चिंतामणि" में ब्रह्माण्ड पुराण का वाक्य है कि जब श्रवण नक्षत्र का आदि भाग रात्रि में हो तो देवी का विसर्जन अगले दिन महोत्सव में करना चाहिये।
             इस नवरात्र में दिनांक 20 अक्टूबर दिन- मंगलवार को अष्टमी तिथि में "महानिशा पूजा" की जायेगी और दिनांक 21 अक्टूबर दिन-बुधवार को दिन में 08 बजकर41 मिनट के बाद से "महानवमी" में हवन आदि कार्य किये जायेंगे।यह हवन दिनांक 22 अक्टूबर को प्रातः 07 बजकर 10 मिनट के पहले तक किया जा सकता है। दिनांक 22 अक्टूबर दिन-गुरुवार को प्रातः 07 बजकर 11 मिनट से दशमी तिथि में "विजयादशमी" का परम पुनीत पर्व मनाया जायेगा तथा नवरात्र-व्रत की पारणा की जायेगी।इस दिन दुर्गा-प्रतिमा विसर्जन, नीलकंठ-दर्शन, शम्मी-पूजन,अपराजिता-पूजन,विजय-यात्रा आदि का विशेष महत्व और उत्तम मुहूर्त है।
           जय शारदीय नवरात्र की। जय दुर्गा माता की।
            पंडित मनोज मणि तिवारी,बेतिया(बिहार)